मंत्री होने के बावजूद अब क्यों नहीं दिखते राजनाथ सिंह, सामने आई सच्चाई
दोस्तों पिछले कुछ सालों से राजनाथ सिंह खबरों में नहीं देखते हैं क्या आपने सोचा है इसकी वजह क्या हो सकती है? और ऐसा क्या हुआ कि भारतीय जनता पार्टी को राजनाथ सिंह से गृह मंत्रालय छीन कर रक्षा मंत्रालय सौंपना पड़ा। दरअसल इसके कई कारण है कुछ भारतीय जनता पार्टी की भीतर की खबरें हैं वहीं विपक्षी को देखते हुए भी भाजपा को ऐसा फैसला लेना पड़ा।
हाल ही में राजनाथ सिंह ने कुछ ऐसा बयान दिया है जिससे यह साबित हो गया कि राजनाथ सिंह को किसी चीज का दर्द अभी भी होता है, भले ही राजनाथ सिंह खुलकर ना बोलते हो लेकिन कुछ बातें उनके बयानों से पता चल जाती हैं। कुछ दिनों पहले राजनाथ सिंह ने एक ऐसा बयान दिया है जिससे उनके अंदर भरा हुआ दर्द मीडिया के सामने आ गया।
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क्या बोले राजनाथ?
राजनाथ सिंह अपने एक बयान में कहा कि ‘राजनीति’ शब्द का अर्थ खो गया है। उन्होंने लोगों से राजनीति में विश्वसनीयता के संकट को समाप्त करने की चुनौती स्वीकार करने का आह्वान किया। राजनाथ सिंह लाल किला लॉन में ब्रह्माकुमारीज ईश्वरीय विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित शिवरात्रि महोत्सव समारोह को संबोधित कर रहे थे। राजनीति एक ऐसी प्रणाली है जो समाज को सही रास्ते पर ले जाती है लेकिन अब इसका अर्थ और महत्व खो गया है लोग इससे नफरत करने लगे हैं।
शब्दों से जीता दिल:
राजनाथ सिंह ने कहा कि हमारे देश में सामाजिक एकता की बहुत ज्यादा जरूरत है। देश के लोगों को अगर देश की तरक्की में हाथ बढ़ाना है तो सबसे पहले एकजुट होकर देश की तरक्की में हाथ बढ़ाना पड़ेगा, अगर सब लोग आपस में लड़ते रहे तो सरकार चाहे कितना भी प्रयास कर ले देश की तरक्की नहीं हो पाएगी। उन्होंने ब्रह्मकुमारियों से आग्रह किया कि वे लोगों को जाति और धर्म से ऊपर उठने में मदद करें।
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अलग-थलग पड़े राजनाथ सिंह?
राजनाथ सिंह ने वह परिपक्वता और गंभीरता दिखाई. यह वह समय भी था कि उनकी पार्टी का नेतृत्व और कार्यकर्ता भी इस अवसर पर उनके साथ खड़े दिखते. हुआ उल्टा. राजनाथ अब अपनों के बीच अकेले दिखते हैं. अफ़वाहें रही हैं कि वह प्रधानमंत्री के उतने करीब नहीं जितना एक रक्षा मंत्री को अपने प्रधानमंत्री के होना चाहिए. वह अमित शाह के निजी वृत्त में भी शामिल नहीं हैं.
भाजपा के भीतर उनका यह अलग-थलग होना क्या रंग लाता है यह ज़ाहिर होने में समय लगेगा. वह सरकार और पार्टी के अंतःपुर में फिर से प्रवेश पाते हैं या नहीं यह अब एक महत्वपूर्ण प्रश्न बना रहेगा. लेकिन कम से कम एक लाभ तो यह हुआ है कि मोदी-शाह-भाजपा के परम विरोधी और आलोचक अब यह आरोप नहीं लगा सकेंगे कि यह पूरी सरकार देश में सामाजिक विभाजन को बढ़ा कर ध्रुवीकरण का गणित खेलना चाहती है. अब भाजपा के पास एक ठोस और बड़ा प्रतीक है ख़ुद को संवेदनशील, समावेशी और ज़िम्मेदार बताने के लिए.
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